रीवा के संजय गांधी अस्पताल, सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल एवं गांधी मेमोरियल हास्पिटल में कार्य करने वाले आउटसोर्स कर्मचारी श्याम शाह मेडिकल कॉलेज के बाहर अपनी मांगों के समर्थन में 5 दिनों से प्रदर्शन कर रहे थे। ये कर्मचारी अपनी 13 सूत्रीय मांगों को लेकर शनिवार को सभी कर्मचारी प्रदेश के उप मुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ल के निवास पर पहुंचे। उप मुख्यमंत्री उनसे मिलने बाहर आए और भड़क गये। उन्होने कहा कि पूर्व से कार्य करने वाले समस्त लोगों को निकाल दो, नई भर्ती करेंगे, पहले तो हाथ जोड़कर नौकरी मांगते हैं फिर दादागीरी करते हैं। मंत्री जी ने तो यह निर्देश तक दे दिये कि सबको गिरफ्तार करो। दरअसल, धरने के दौरान आउटसोर्स कर्मचारियों पर तोड़-फोड़ एवं गंदगी करने के आरोप तो लगा दिये किन्तु प्रदर्शनकारियों की बात सुनने की बजाय उन्हे बंद कराने के निर्देश दे दिये ।
गौर करने वाली बात यह है कि पीडि़त लोग यह सोचकर नेताओं के पास जाते हैं कि समाधान मिलेगा किन्तु उन पर लाठियां बरसाई जाती हैं, जेलों में बंद कर दिया जाता है। शांति पूर्वक तरीके से भी अपनी बात रखने जाओं तो फरियादी पर ही कार्यवाही के निर्देश दे दिये जाते हैं आखिरकार जनता किसके पास अपनी बात रखें।
चुनाव के दौरान नेता, आम जनता से हाथ-पैर जोड़ते हैं, उनके साथ भोजन करते हैं, किन्तु जब चुनाव पूर्ण हो जाता है। उसके बाद सत्ताधारी ऐसा रवैया अपनाते हैं आखिरकार यह क्या है ? ऐसी कार्यवाही से तो ये लगता है कि यह तो सिर्फ वोट बैंक के लिए ही किया जाता है। क्यूंकि नेता तो चुनाव के समय हाथ जोड़ लेते हैं इसके बाद जनता पूरे पांच साल हाथ जोड़ कर अपनी परेशानी को लेकर नेताओं के दरवाजों पर न्याय अथवा कार्यवाही की एक उम्मीद के साथ लगे रहते हैं।
क्या जनता को जनप्रतिनिधि के पास अपनी बात रखने का अधिकार है अथवा नहीं ?