Bhopal MP khulasa//करवा चौथ 2025: छलनी से चांद और पति को देखने की परंपरा के पीछे छिपा है गहरा रहस्य

करवा चौथ 2025: छलनी से चांद और पति को देखने की परंपरा के पीछे छिपा है गहरा रहस्य

भोपाल संवाददाता संजय सराठे
मो– 7509116765

करवा चौथ का नाम आते ही हर विवाहित महिला के चेहरे पर मुस्कान और आंखों में चमक आ जाती है। यह व्रत भारतीय संस्कृति में प्रेम, समर्पण और विश्वास का प्रतीक माना जाता है। हर साल यह पर्व कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस बार करवा चौथ का व्रत 10 अक्टूबर, शुक्रवार को मनाया जाएगा।
इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, सुख और समृद्धि की कामना करते हुए निर्जला व्रत रखती हैं और माता करवा की पूजा करती हैं। दिनभर उपवास रखने के बाद शाम को महिलाएं सोलह श्रृंगार से सजी-धजी पूजा की तैयारी करती हैं। पूजा थाली में दीपक, मिठाई, करवा (जल का पात्र) और छलनी सजाई जाती है।
रात में चांद निकलने पर महिलाएं छलनी से चंद्र दर्शन करती हैं और फिर उसी छलनी से अपने पति का चेहरा देखकर व्रत खोलती हैं। बिना छलनी से चांद और पति को देखे करवा चौथ का व्रत अधूरा माना जाता है।
मान्यता के अनुसार, छलनी में बने हजारों छोटे छेदों से जब चांद की किरणें गुजरती हैं, तो वह सौभाग्य और दीर्घायु का प्रतीक मानी जाती हैं। कहा जाता है कि छलनी से पति का चेहरा देखने से उनके जीवन में खुशहाली बनी रहती है और आयु में वृद्धि होती है! इस परंपरा के पीछे चंद्र देव और भगवान गणेश से जुड़ी एक पौराणिक कथा है। कथा के अनुसार, एक बार चंद्र देव अपनी सुंदरता पर अभिमान करते हुए भगवान गणेश का मजाक उड़ाने लगे। इससे क्रोधित होकर गणेशजी ने उन्हें श्राप दे दिया कि जो भी व्यक्ति चंद्रमा को देखेगा, वह कलंक का भागी बनेगा।
चंद्र देव ने क्षमा याचना की, तब गणेशजी ने कहा कि यह श्राप केवल भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तक सीमित रहेगा, जिसे “कलंक चतुर्थी” कहा गया। तभी से यह परंपरा शुरू हुई कि महिलाएं चांद को सीधे नहीं, बल्कि छलनी की आड़ से देखती हैं, ताकि किसी प्रकार का दोष न लगे
करवा चौथ का यह व्रत न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा है, बल्कि यह पति-पत्नी के बीच अटूट विश्वास, प्रेम और समर्पण का प्रतीक भी है। भारतीय संस्कृति में यह पर्व दांपत्य जीवन की मधुरता और एक-दूसरे के प्रति निष्ठा का संदेश देता है।

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