चतुष पुरुषार्थ के साथ साथ मृत्यु के पार ले जाने का साधन भी है भागवत कथा: महामंडलेश्वर स्वामी श्री श्री1008श्री स्वामी ज्योतिर्मयानंद गिरी जी महाराज
अखण्ड परमधाम आश्रम पर चल रही श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन सुनाया राजा परीक्षित का प्रसंग, बताए भगवान के 24 अवतार
ब्यावरा। मन स्वभाव से पवित्र नहीं होता इसे साधना द्वारा इस मन को पवित्रत करने के लिए श्रीमद्भागवत कथा को सुनना होगा। मनोयोग पूर्वक सुने कथा ओर करे अपने मन को पवित्र साधना से ह्रदय विराजित भगवान के होगे दर्शन जो मृत्यु के पार परम तत्व की ओर जाना चाहते है वे मन लगाकर भागवत कथा सुनें। यह मृत्यु से पार जाने का एक मात्र साधन है। यह बात स्थानीय अखण्ड परमधाम आश्रम पर चल रही श्रीमद्भागवत कथा के दौरान कथा व्यास महामंडलेश्वर स्वामी आचार्य श्री1008श्री ज्योतिर्मयानंद जी महाराज ने कही। उन्होंने कहा कि केवल भजन सुनने से काम नहीं चलेगा। जो शांत मन से जो देखा जा सकता है वह हलचल में नहीं। इसलिए शांत मन से कथा सुनें। इस अवसर पर उन्होंने भगवान के 24 अवतारों का वर्णन भी किया। साथ ही
भीष्म की स्तुति, परीक्षित राज्याभिषेक।
परीक्षित के श्राप आदि प्रसंग की कथा सुनाई एकाग्रता से मिलते है भगवान-
कथा के दौरान आचार्य श्री ने कहा कि
जो एकाग्र मन से भागवत कथा सुनते है उन्हें ईश्वर तत्व का अनुभव होता है। यह कथा साक्षात अमृत है इसके प्रकट करने के लिए भगवान ने 5 अवतार लिए है। हमारे अंदर भगवान रहता है। जब हम कोई गलत काम करते है तो ईश्वर इशारा करते है ये गलत है, लेकिन कामना हावी रहती तो मनुष्य वह काम करता है। पाप करता जाता है। जहां कोई नहीं देखता वहां मेरा परमात्मा देखता है। जीते जी सुख देने वाली कथा ही होती है।
समलैंगिकता का भारत मे कोई स्थान नहीं-
कथा के दौरान आचार्य श्री ने कई राष्ट्रीय मुद्दों पर भी बात की। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के कुछ जज भारत की संस्कृति को कहाँ ले जाना चाहते है। समलैंगिकता कानून का भारत मे कोई महत्व नहीं है। यह धर्म के लिए अच्छा नहीं। समलैंगिकता से क्या मिलेगा। ये लोग जो समलैंगिकता की पैरवी कर रहे है व भोगवाद की ओर समाज को धकेल रहे है। हम सब को भारतीयता के साथ रहन है। यह अप्राकृतिक है। न सैद्धान्तिक है। जबकि अपराध है। इससे बचना है। जहां हो वहां इसको स्वीकार नहीं करना। हम सब इसका विरोध करते है। जो शास्त्र में बताया है वह हम मानते है। समलैंगिक कानून से कुछ भी सृजन नहीं होने वाला है।
लौकिक जीवन मे कुछ सहने के अभ्यास करें
दूसरे दिन की कथा के बाद युगपुरूष अनंत श्री पूज्य परमानंद जी महाराज ने भी प्रवचन किए। उन्होंने कहा कि मनुष्य एक बार नहीं बार- बार मृत्यु को प्राप्त होता है। हमारा लक्ष्य मृत्यु से पर जाना होना चाहिए। देह नहीं रहेगा यह विश्व के सब धर्म मानते है। किसी को समझाने की आवश्यकता नहीं है। शंकराचार्य कहते है, यह देह मिथ्या है। स्वप्न है। जन्म मरण संसार मिथ्या है। जिज्ञासुओं के कल्याण एवं व्यवहार जीव अच्छा बने इसके लिए कथा का आयोजन होता है। हर मनुष्य के जीवन मे 16 संस्कार होते है। लौकिक जीवन मे कुछ सहने के भी अभ्यास करें। सर्दी, गर्मी, बारिश को सहन करना सीखें। लाभ लेने के लिए गुरुकुल में तपस्या पूर्वक विद्या लेते थे। जब हम सहेंगे जीवन तब धन्य होगा। सब बीमारियों की जड़ अभिमान है। माया के द्वारा डस लिए गए है। दिमाग भटक हुआ है। इसको लाना पड़ता है कल्याण के रास्ते पर। मनुष्य कचरा एकत्र करने में लगा हुआ है। जबकि राम रतन प्राप्त करो।