//रायसेन खुलासा उवेश खान//
देशभर में आज यानी 29 जून गुरुवार को ईद उल अजहा का त्योहार धूमधाम से मनाया जा रहा है. वही सिलवानी में भी बड़े ही धूमधाम से ईद का त्यौहार मनाया जा रहा है
रायसेन।
सिलवानी में बारिश होने के कारण ईदगाह में नमाज नहीं हुई जिसके कारण से मस्जिदों में नमाज अदा की गई बड़ी संख्या में मस्जिदों में पहुंचकर लोगों ने नमाज अदा की ओर हम आप को बता दे की बकरीद के दिन पशु की कुर्बानी करने का काफी खास महत्व है,कुर्बानी के बाद पशु के गोश्त को तीन हिस्सों में बांट दिया जाता है. इन तीन हिस्सों में एक रिश्तेदारों के लिए दूसरा हिस्सा स्वयं के लिए के लिए तीसरा हिस्सा गरीबों के लिए भी रखा जाता है.
कैसे शुरू हुई कुर्बानी की परंपरा?
इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, इस्लाम के पैगंबर हजरत इब्राहिम 80 साल की उम्र में पिता बने थे. उनके बेटे का नाम इस्माइल था. इस्माइल के पिता हजरत इब्राहिम को बहुत ज्यादा प्यार था.
इसी दौरान हजरत इब्राहिम को एक रात ख्वाब आया कि उन्हें अपनी सबसे प्यारी चीज को कुर्बान करना होगा. इस्लामिक जानकार बताते हैं कि हजरत इब्राहिम के लिए ये अल्लाह का हुक्म था, जिसके बाद हजरत इब्राहिम ने बेटे को कुर्बान करने का फैसला कर लिया.
इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, अल्लाह के हुक्म पर बेटे इस्लाइन की कुर्बानी देने से पहले हजरत इब्राहिम ने कड़ा दिल करते हुए आंखों पर पट्टी बांध ली और उसकी गर्दन पर छुरी रख दी. हालांकि, उन्होंने जैसे ही छुरी चलाई तो वहां अचानक उनके बेटे इस्माइल की जगह एक दुंबा (बकरा) आ गया. हजरत इब्राहिम ने आंखों से पट्टी हटाई तो उनके बेटे इस्माइल सही-सलामत थे