//रायसेन खुलासा उवेश खान//
रायसेन जिले के सिलवानी तहसील अंतर्गत लालघाटी बड़ादेव ठाना में राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह जी के बलिदान दिवस पर किया गया याद और उनके चित्र पर माल्यार्पण किया गया ।
1857 की क्रांती में अपने प्राण न्योछावर करने वाले वीर राजा शंकर शाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह गढ़ा मंडला और जबलपुर के गोंड राजवंश के प्रतापी राजा संग्राम शाह के वंशज थे इस राजवंश की कई पीढ़ियों ने देश और आत्मसम्मान के लिये आपने प्राण न्योछावर किये थे राजा संग्राम शाह के बड़े पुत्र दलपत शाह थे जिनकी पत्नी रानी दुर्गावती और पुत्र वीरनारायण ने अपनी मात्रभूमि और आत्मसम्मान की रक्षा करते हुए अकबर की सेना से युद्ध कर अपना बलिदान दिया इसके पश्चात गढ़ा मंडला अकबर के अधीन हो गया अकबर ने अपनी अधीनता में शासन चलाने के लिये रानी दुर्गावती के देवर राजा दलपत शाह के छोटे भाई चंदा नरेश चन्द्र शाह को राजा बनाया इन्ही चन्द्र शाह की 11 वीं पीढ़ी में अमर शहीद शंकर शाह ने जन्म लिया राजा शंकर शाह और उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह ने 1857 की क्रांती में अपने प्राण अर्पित कर इस वंश से पुनः देश के लिये अपना बलिदान दिया
*कौन थे वीर राजा शंकर शाह – रघुनाथ शाह*
शंकर शाह के दादा गोंड राजवंश के अंतिम प्रसिद्ध शासक राजा निजाम शाह थे और इनके पिता राजा सुमेद शाह थे राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह जन्म मंडला के किले में हुआ था इस किले का निर्माण इसी गोंड राजवंश के राजा नरेन्द्र शाह ने 1698 में करवाया था यह किला तीन दिशाओं से माँ नर्मदा की अथाह जल राशी से घिरा था जो इस किले को तीन दिशाओं में सुरक्षा प्रदान करती थी राजा शंकर शाह के पिता राजा सुमेद शाह के समय मंडला पेशवाओं और मराठाओं के अधीन आ गया था और पेशवा के प्रतिनधि के रूप में सुमेद शाह मंडला के राजा के रूप में शासन चला रहे थे इसी समय नरहरी शाह और सुमेद शाह के बीच सत्ता का संघर्ष चल रहा था 1818 में मंडला अंग्रेजों के अधीन आ गया राजा शंकर शाह पहले के राजाओं की तरह स्वतंत्र राजा नहीं थे, उनके पास मात्र पुरवा और कुछ गाँव की जागीदारी बची थी और उन्हें अंग्रेजों से पेंशन मिलती थी परन्तु गढ़ा मंडला और जबलपुर की जनता में उन्हें वही मान सम्मान प्राप्त था जो उनके पूर्वजों को था राजा शंकर शाह की पत्नी का नाम रानी फूलकुंवर था और उनके एकमात्र पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह थे कुंवर रघुनाथ शाह का विवाह रानी मन कुंवर से हुआ और इनके एकमात्र पुत्र का नाम लक्ष्मण शाह थे
लार्ड डलहोजी की भारतीय राज्यों को हड़पने के लिये एक नीति बनाई थी जिसे डोक्टराइन ऑफ़ लेप्स कहा जाता था इसमें जिस किसी राजा का आनुवंशिक उत्तराधिकारी नहीं होता था उसे अंग्रेजी राज्य में विलय कर लिया जाता था इस नीति के तहत झाँसी नागपुर,अवध ,कानपुर, मंडला के रामगढ को अंग्रेज अपने अधीन करना करना चाहते थे इसके अतिरिक्त गाय और सुअर के चर्बी वाले कारतूस भी क्रांती का मुख्य कारण बने इसके पूर्व 1842 के आदिवासी आन्दोलन को अंग्रेज बर्बरता पूर्वक कुचल चुके थे राजा रघुनाथ शाह इन सभी घटनाओं से वेहद आहत थे और अंग्रेजों को इस देश से भगाना चाहते थे
*वीर शंकर शाह-रघुनाथ शाह और *1857 की क्रांती*
राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह दोनों ही बहुत वीर सांथ ही अच्छे कवि थे और अपनी कवितों के माध्यम से लोगों में देशभक्ति के भावना का संचार कर रहे थे इसी समय जबलपुर अंग्रेजों में 52 वीं रेजिमेंट तैनात थी जिसके कई सैनिक अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का मन बना चुके थे इस समय तक क्रांती देश के अधिकांश भागों में फ़ैल चुकी थी मध्य भारत में राजा शंकर शाह को जिनकी उम्र 70 वर्ष थी क्रांती का नेता चुना गया राजा शंकर शाह की अध्यक्षता में पुरवा में आसपास के जमीदारों और राजाओं की सभा बुलाई गई जिसमें रानी अवन्ती बाई भी शामिल हुईं इस क्षेत्र में प्रचार के लिए एक पत्र और दो काली चूड़ियों की एक पुड़िया बनाकर प्रसाद के रूप में वितरित की गईं इसके पत्र में लिखा गया अंगेजों से संघर्ष के लिए तैयार रहो या चूड़ियाँ पहनकर घर बैठो जो राजा,जमींदार और मालगुजार पुड़िया ले तो इसका अर्थ क्रांति में अंग्रेजों के विरुद्ध अपना समर्थन देना था इस अवसर मानसिंह शिक्षक, पप्पू ठाकुर सरपंच प्रतिनिधि कैलाश ठाकुर सरपंच रामसरूप ऊइके *पप्पू काकोडिया जी, मंदरू सिरसाम , जीवन सिंह, रामसिंह भल्लावी, भूरा जी धर्मेंद्र जी, बालाराम जी, कमलेश जी, किसान लाल उईके, कमल सिंह मास्कोले सहित बड़ी संख्या जन प्रतिनिधि मौजूद रहे