बकलोल… सत्य मेव जयते
कलेक्टर आदमी तो एक नंबर है बस एक दाने से मात खा रहे..बूझो तो जाने !
बैतूल। आईएएस अमनबीर सिंह को लेकर यह जुमला सटीक बैठता है कि आदमी तो एक नंबर बस एक दाने से मात खा रहे, मतलब गड़बड़ी हो रही। अब वो दाना क्या है इस पर आम लोगो की आम राय यह है कि वे रिजल्ट ओरियंटेड नही है। बतौर कलेक्टर यदि उनके परफारमेंस की समीक्षा की जाएगी तो यही सामने आएगा कि लोगो की समस्या या शिकायत सुनने में वे पूरी संवेदनशीलता दिखाते है पर उनकी सुनवाई में समाधान नही दे पाते। ऐसा क्यों होता है , इसका बड़ा कारण यह सामने आया कि उनके अधीनस्थ ही उनके आदेश निर्देश की अनदेखी या अनसुनी करते है। इसके हाल फिलहाल के कई उदाहरण है। आम लोगो की समस्या या शिकायत के आवेदन में छोड़िए कलेक्टर किसी पॉलिसी मैटर को लेकर भी टी एल या किसी अन्य बैठक में कोई निर्देश देते है या फिर कोई लिखित आदेश जारी करते है उसकी खुली अवेहलना की जाती है । कई बार कलेक्टर जो दावा करते है उसका ठीक उल्टा होता नजर आता है , ऐसे में जब कोई कलेक्टर से उसी मामले में सवाल करने लगता है तो कलेक्टर उस से कटते या फेस करने बचते नजर आते है, उसका फोन तक अटेंड नही करते । इसका ताजा मामला शराब दुकान की शिकायत, जांच और उस पर कलेक्टर के दावे से जुड़ा है। यह सब महज उदाहरण है। इस स्थिति की वजह से कलेक्टर की अच्छाई और सच्चाई का कचूमर ही निकल जाता है। इन सब में जिस बात से कलेक्टर पर भेदभाव को लेकर प्रश्नचिन्ह लगता है वह यह है कि जो अफसर आम लोगो के मामले कलेक्टर के निर्देश के बाद भी तमाम नाज नखरे की खुली नुमाईश पूरी बेशर्मी से करता है, वही अफसर शासकीय कार्य में बाधा के मामले पूंजीवाद को बचाने लुंजपुंज और उपलब्ध साक्ष्य को नजर अंदाज करने वाली रिपोर्ट तक बना देता है, क्या यह पूजीवाद कलेक्टर के चेंबर में दो घंटे बैठने का स्वांग करता है उसका तो साइड इफेक्ट नही ? जब यह स्थितियां दिखेंगी तो सवाल भी उठेंगे और तोहमत भी लगेगी। इसके अलावा कलेक्टर ऐसा कुछ भी नही कर पा रहे जिससे उनकी प्रशासनिक दक्षता का लोगो को दिखे, हालत यह है कि उनके नपा प्रशासक रहते ही सी एम ओ ने उनके दावों को हवा हवाई साबित किया, इसके भी प्रमाण उपलब्ध है।
कायदे से देखा जाए तो कलेक्टर बतौर इंसान अच्छे हो पर एक प्रशासक के रूप में अपनी छाप नही छोड़ पा रहे।