आचार्य जी की कलम से …..
सुरेश आचार्य, संपादक एवं निदेशक – Neuglobal Khulasa News Network Pvt. Ltd.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा देकर राजनीतिक हलचल मचा दी है। सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद इस्तीफे का एलान किया गया। उन्होंने I.N.D.I.A. ब्लॉक की मजबूती को प्राथमिकता दी है। AAP ने यह साबित करने का प्रयास किया कि वह किसी भी सवाल से कतरा नहीं रही।
दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के अरविंद केजरीवाल के फैसले ने एक स्तर पर लोगों को चौंकाया जरूर, लेकिन इसने प्रांतीय और राष्ट्रीय राजनीति के कई तात्कालिक और कुछ दूरगामी पहलुओं की ओर भी ध्यान खींचा है।
फैसले की टाइमिंग :
केजरीवाल के जेल में रहते हुए उन पर इस्तीफे का दबाव बनाने में विरोधियों ने कोई कसर उठा नहीं रखी। उस पूरी अवधि में सभी दबावों की अनदेखी करते हुए वह अड़े रहे। अब जब केंद्रीय एजेंसी CBI पर सख्त टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी और पूरी पार्टी इसे केजरीवाल की जीत बता रही है, तब उन्होंने इस्तीफे का एलान कर दिया। इसी बिंदु पर चुनावी राजनीति की रणनीतिक बारीकियां अपनी ओर ध्यान खींचती हैं।
आक्रामक मुद्रा :
दिलचस्प है कि इस मामले में चाहे BJP हो या AAP दोनों में हमलावर तेवर बनाए रखने की जैसे होड़ लगी हुई है। दोनों ही दल इस बात को लेकर काफी सतर्क नजर आते हैं कि वे बचाव की मुद्रा में न दिखने लग जाएं। AAP नेता चाहें या न चाहें केजरीवाल की छवि दिल्ली में बड़ा चुनावी मुद्दा बनने ही वाली है। ऐसे में इस्तीफे के जरिए इस सवाल को केंद्र में लाकर AAP ने यह साबित करने का प्रयास किया है कि वह इस सवाल से किसी भी रूप में कतरा नहीं रही।
राष्ट्रीय राजनीति :
महत्वपूर्ण यह भी है कि केजरीवाल ने पहले इस्तीफा न देने से जुड़े एक सवाल का जवाब देते हुए पूरे I.N.D.I.A. ब्लॉक को इस दायरे में शामिल कर लिया। उन्होंने कहा कि चाहे कर्नाटक में सिद्धारमैया हों या केरल में पी विजयन या पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी- BJP ने इन सबके खिलाफ मामला दर्ज कर इनकी सरकार गिराने की साजिश तैयार रखी थी। इस बड़ी साजिश को नाकाम करने के लिए ही वह अब तक इस्तीफा न देने की बात पर अड़े रहे। साफ है कि खुद को I.N.D.I.A. ब्लॉक में मजबूती से बनाए रखना अभी उनकी प्राथमिकता में है। हालांकि हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से आखिरी पलों में तालमेल के कोई संकेत अभी तक नहीं हैं।
ईमानदारी की राजनीति :
चाहे अन्ना आंदोलन हो या एक राजनीतिक पार्टी के रूप में उभर आने के बाद का, AAP लीडरशिप ईमानदारी को कानून-व्यवस्था की नजरों से ही देखती थी। इसीलिए शुरू में उसका स्टैंड यह था कि जिस नेता पर भी कोई मामला दर्ज हो या उसे गिरफ्तार किया जाए, उसे इस्तीफा दे देना चाहिए। इस बार पार्टी के नेता पद छोड़ने का फैसला करते हुए भी जनता की अदालत में खुद को बेकसूर साबित करने पर जोर दे रहे हैं। यह पार्टी के नजरिए में आए बदलाव का सबूत है। यह भारत में राजनीति की जीवंतता की एक निशानी तो है ही।
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