आम आदमी पार्टी ने आंगनबाड़ी, आशा-ऊषा व रोजगार सहायकों की मांगों का किया समर्थन
कलेक्ट्रेट के पास लम्बे समय से धरने पर बैठे आंगनवाड़ी और आशा-ऊषा सहयोगिनी संघ की जायज मांगों का आम आदमी पार्टी द्वारा नैतिक समर्थन किया गया है। चंद्रगुप्त नामदेव,अरविंद परस्ते, सहजान परस्ते और पूर्व जिला अध्यक्ष आम आदमी पार्टी मंडला पी.डी.खैरवार ने जानकारी दी है, कि कलेक्ट्रेट के पास धरना स्थल पर मंगलवार 29 मार्च को पहुंचकर धरना दे रहे महिलाओं के साथ मुलाकात कर उनका हालचाल जाना। श्री परस्ते ने बताया है, कि सचमुच आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सहायिका और आशा-ऊषा सहयोगिनी वर्ग के अलावा और भी ऐसे दर्जनों वर्ग हैं, जिनसे सरकार जमीनी स्तर पर सरकारी काम कराती तो है और बदले में नाकाफी बिल्कुल भी कम मानदेय देकर कभी न कभी रैगुलर करने का आस्वासन देती रहती है। लाखों की संख्या में ऐसे वर्ग भी सरकारी बनने के आसरे आसरे में ही जीवन काट देते हैं।जैसे ही 60-62 वर्ष की उम्र हुई तो दूध में पड़ी मख्खी की तरह सरकार के द्वारा अलग दिया जाता है। इस तरह पूरा जीवन सरकार के काम करके बिताए ऐसे जमीनी वर्ग का जीवन नर्क बनकर रह जाता है। उदाहरण के तौर पर साफ है,अतिथि शिक्षक,प्रेरक,मेंट,रसोईया,मीटर वाचक, मलेरिया लिंक वर्कर,गौ सेवक, कम्प्यूटर ऑपरेटर,अंशकालिक भृत्य,संविदा कर्मी, रोजगार सहायक,मोबीलाईजर, वैक्सीन कैरियर,स्वास्थ्य कर्मी तथा प्रायः सभी विभागों में सरकारी सर्विस की तरह सेवा देते आ रहे और भी लोग। कुछ वर्ग तो ऐसे भी हैं,जिनको एक पैसे भी सरकार नहीं देती और काम बराबर लेते आ रही है।जैसा कि मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम में काम करने वाले समूहों के सदस्यों को सरकार एक नया पैसा पारिश्रमिक या कमीशन के रूप में भुगतान नहीं करती।जबकि राशन दुकानों से स्कूलों तक खाद्यान्न पहुंचाने,बाजार से सब्जी,तेल,मसाले,दूध,ईंधन जैसी भोजन बनाने की सामग्रियां ढोकर लाना पड़ता है। बावजूद कोई सपोर्ट नहीं। सरकार इनमें से किसी को भी सरकारी नौकरी में नहीं मानती है और न ही श्रमिक मानकर चलती है।सभी को एक प्रकार से बेगार पर रखे गये कमजोर लोग मानकर शोषणकारी व्यवहार करती है।किसी को 5 सौ रुपए महीने,किसी को 1 हजार रुपए महीने, किसी को 2 सौ रुपए महीने तो किसी को 4-5 हजार में ही काम चलाया जाता है।अधिकतम आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को 10 हजार रुपए महीने वह भी वेतन नहीं मानदेय देकर अपना सारा काम चलाते आ रही है
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